मेरी कोशिशों को वादा न समझना
प्यार का जुनूं है सितम न समझना
हर कश्ती की मंजिल है दरिया का साहिल
मगर हर साहिल को अपना न समझना
अक्सर रूह जाती सी लगती है मुहब्बत में
दिल में ऐसा होने को तड़पना न समझना
हर इक रात ले के आती है एक नया ख्वाब
ये तो सपना है हक़ीकत न समझना
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
5th Oct. 01, '156'
प्यार का जुनूं है सितम न समझना
हर कश्ती की मंजिल है दरिया का साहिल
मगर हर साहिल को अपना न समझना
अक्सर रूह जाती सी लगती है मुहब्बत में
दिल में ऐसा होने को तड़पना न समझना
हर इक रात ले के आती है एक नया ख्वाब
ये तो सपना है हक़ीकत न समझना
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
5th Oct. 01, '156'
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