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Saturday, April 26, 2014

हर किनारे छूटने लगे हैं

हर किनारे छूटने लगे हैं
अपने भी रूठने लगे हैं

चला था जिन रिश्तों के सहारे
वो मरासिम भी टूटने लगे हैं

तुम्हीं बतलाओ कहाँ जाकर रोऊँ
अब आंसू  भी सूखने लगे हैं

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
5th Nov. 13, '279'

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