हर किनारे छूटने लगे हैं
अपने भी रूठने लगे हैं
चला था जिन रिश्तों के सहारे
वो मरासिम भी टूटने लगे हैं
तुम्हीं बतलाओ कहाँ जाकर रोऊँ
अब आंसू भी सूखने लगे हैं
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
5th Nov. 13, '279'
अपने भी रूठने लगे हैं
चला था जिन रिश्तों के सहारे
वो मरासिम भी टूटने लगे हैं
तुम्हीं बतलाओ कहाँ जाकर रोऊँ
अब आंसू भी सूखने लगे हैं
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
5th Nov. 13, '279'
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