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Thursday, April 10, 2014

कुछ अशआर- 4

1. मत निहारो  ऐसे किसी को 
कहीं तुम्हारी उसे नज़र न लग जाए 

2. सब कुछ जानते हुए भी 
   क्यों हो तुम अनजान 
   कब जानोगी मुझे मेरी जान 
    चाहे तब तक निकल जाए शाहिद की जान 

3. अब किसे कहूं अपना और किसे पराया 
    जब तुम्हीं हो मेरे अपने तुम्हीं मेरे पराये 

4. काश अगर ऐसा होता 
    मैं तुम्हें सोचता तो तुम्हें देखता 

5. ग़म में हो तुम 
     ग़म में हैं हम 
    हम दोनों के ऊपर 
    दुनिया के हैं ये सितम 

6.  मेरी जान से प्यारी है जो जान 
   उसी जान पे कुर्बान है मेरी जान 

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
27th Feb. 2000

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