रूठा- रूठा सा है वो ज़िन्दगी से
हर वक़्त गिला है उसे ज़िन्दगी से
शबो-रोज लूटा है उसे ज़िन्दगी ने
फिर भी प्यार है उसे ज़िन्दगी से
हर मुस्कराहट में उसके ग़म है
जाने क्या चाहता है वो ज़िन्दगी से
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
5 th Feb. 02, '194'
हर वक़्त गिला है उसे ज़िन्दगी से
शबो-रोज लूटा है उसे ज़िन्दगी ने
फिर भी प्यार है उसे ज़िन्दगी से
हर मुस्कराहट में उसके ग़म है
जाने क्या चाहता है वो ज़िन्दगी से
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
5 th Feb. 02, '194'
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