इश्क़ की गलियां हो गयीं अब बदनाम
कोई किसी का न करे एतबार न करे इल्जाम
हर पल वो शख्स मुहब्बत का दम भरता था
आज प्यार के हर दरीचे से हुआ है बदनाम
खुद को कहता था उगता सूरज वो, दोस्तो
शायद उसे मालूम न था आती भी है शाम
न रही वो महफिलें, वो साक़ी, न ही वो रिंद
बेमजे हो गये वो सारे साक़ी के जाम
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
27th July 05, '230'
कोई किसी का न करे एतबार न करे इल्जाम
हर पल वो शख्स मुहब्बत का दम भरता था
आज प्यार के हर दरीचे से हुआ है बदनाम
खुद को कहता था उगता सूरज वो, दोस्तो
शायद उसे मालूम न था आती भी है शाम
न रही वो महफिलें, वो साक़ी, न ही वो रिंद
बेमजे हो गये वो सारे साक़ी के जाम
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
27th July 05, '230'
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