यूँ टूट के उसने मुहब्बत की है
अपने घर को जला के रौशनी की है
शामो-सहर जलता है यादों का चिराग
आज शम्मा ने खूब रौशनी की है
क्या कहूँ उसके आईने के लिए
सरे तस्वीर जला के दिल रौशनी की है
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
21st Aug. 2000, '232'
अपने घर को जला के रौशनी की है
शामो-सहर जलता है यादों का चिराग
आज शम्मा ने खूब रौशनी की है
क्या कहूँ उसके आईने के लिए
सरे तस्वीर जला के दिल रौशनी की है
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
21st Aug. 2000, '232'
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