उम्र का एक हिस्सा मैंने तेरे साथ गुजारा है
तुम मानो या न मानो ये पागल दिल तुम्हारा है
किले की दीवारों पर उसने नाम लिख दिया
वाह क्या नक्शा और क्या नजारा है
बचपन में बनाया था इक मिटटी का घर
आज मुझे वो घर जान से प्यारा है
अक्सर मुहब्बत परस्त दुआ मांगने आते हैं यहाँ
शायद इसीलिए कहते हैं मुहब्बत का किनारा है
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
27th July 03, '225'
तुम मानो या न मानो ये पागल दिल तुम्हारा है
किले की दीवारों पर उसने नाम लिख दिया
वाह क्या नक्शा और क्या नजारा है
बचपन में बनाया था इक मिटटी का घर
आज मुझे वो घर जान से प्यारा है
अक्सर मुहब्बत परस्त दुआ मांगने आते हैं यहाँ
शायद इसीलिए कहते हैं मुहब्बत का किनारा है
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
27th July 03, '225'
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