जहाँ तुम्हारी नज़र जाए
बस ख़ुशी नज़र आये
खुशियों का हो सामयाना
खुशियों की हों दीवारें
हो आहट ख़ुशी की जिसमें
तबस्सुम के हों फूल सिवाए गुलमोहर
इक ऐसा ही हो तुम्हारा घर
जहां उम्र का ये साल गुजर जाए
'अजनबी' की है ये मुसलसल दुआ
तन्हा न रहे तुम्हारा सफ़र
अर्सों रहे इस घर से तुम्हारा
गहरा और गहरा मरासिम !!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
2nd June ,02, '159'
बस ख़ुशी नज़र आये
खुशियों का हो सामयाना
खुशियों की हों दीवारें
हो आहट ख़ुशी की जिसमें
तबस्सुम के हों फूल सिवाए गुलमोहर
इक ऐसा ही हो तुम्हारा घर
जहां उम्र का ये साल गुजर जाए
'अजनबी' की है ये मुसलसल दुआ
तन्हा न रहे तुम्हारा सफ़र
अर्सों रहे इस घर से तुम्हारा
गहरा और गहरा मरासिम !!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
2nd June ,02, '159'
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