सारी -सारी रात जागती रहती हूँ
नींद नहीं आती करवटें लेती रहती हूँ
तारे गिन -गिन कर रात गुजरती है
तेरी यादों से प्यार करती रहती हूँ
छुआ था तुमने उन चूड़ियों को कभी
उन्हीं चूड़ियों को चूमती रहती हूँ
उस रात का इक -इक अहसास ज़िन्दा है
उसी अहसास को सोचती रहती हूँ
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
3rd Dec. 2000, '154'
नींद नहीं आती करवटें लेती रहती हूँ
तारे गिन -गिन कर रात गुजरती है
तेरी यादों से प्यार करती रहती हूँ
छुआ था तुमने उन चूड़ियों को कभी
उन्हीं चूड़ियों को चूमती रहती हूँ
उस रात का इक -इक अहसास ज़िन्दा है
उसी अहसास को सोचती रहती हूँ
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
3rd Dec. 2000, '154'
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