हम तुम और वो वादियाँ
और हवाओं के झोंके
ऐसे आलम में
हम दोनों के हाथों में हाथ
और तेरे आँचल का
हवा में लहराना
वो दो नज़रों का मिलना
और हया के साथ झुकना
वो पल भर में,
ज़िन्दगी की सारी खुशियाँ
लगा जैसे दामन में
अब तो जगह ही नहीं
शाम की हल्की सी तारीकी
मगर ज़िन्दगी की
कभी ख़त्म न होने वाली सुबह
तेरे लव, तेरे आरिज, तेरी आँखें
और वो सबसे प्यारी तबस्सुम
शायद वो प्यार ही था, प्यार
यार, हाय वो प्यारा सा प्यार
नज़र न लगे ऐसे प्यार को
बढ़े उम्र , और गहरे हों रिश्ते
बस ताक़यामत आये आज का दिन !!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
5th Oct. 04, '200'
This poem is dedicated to that day, YOU put first step in my life........!
और हवाओं के झोंके
ऐसे आलम में
हम दोनों के हाथों में हाथ
और तेरे आँचल का
हवा में लहराना
वो दो नज़रों का मिलना
और हया के साथ झुकना
वो पल भर में,
ज़िन्दगी की सारी खुशियाँ
लगा जैसे दामन में
अब तो जगह ही नहीं
शाम की हल्की सी तारीकी
मगर ज़िन्दगी की
कभी ख़त्म न होने वाली सुबह
तेरे लव, तेरे आरिज, तेरी आँखें
और वो सबसे प्यारी तबस्सुम
शायद वो प्यार ही था, प्यार
यार, हाय वो प्यारा सा प्यार
नज़र न लगे ऐसे प्यार को
बढ़े उम्र , और गहरे हों रिश्ते
बस ताक़यामत आये आज का दिन !!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
5th Oct. 04, '200'
This poem is dedicated to that day, YOU put first step in my life........!
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