तन्हा इक अजनबी से मिला
हुआ हासिल उसे इक सिला
झूम उठे नस-नस का लहू
कोई ऐसी शराब उसे पिला
ज़िन्दगी बन जाये इक नगमा
ऐ खुदा ! हमसफ़र ऐसा मिला
कभी ख़त्म न हो ऐसी खुशबू
मुहब्बत का ऐसा गुल खिला
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
10th Nov. 01, '192'
हुआ हासिल उसे इक सिला
झूम उठे नस-नस का लहू
कोई ऐसी शराब उसे पिला
ज़िन्दगी बन जाये इक नगमा
ऐ खुदा ! हमसफ़र ऐसा मिला
कभी ख़त्म न हो ऐसी खुशबू
मुहब्बत का ऐसा गुल खिला
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
10th Nov. 01, '192'
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