कभी कितनी हलचलों से भरी थी ज़िन्दगी
मगर आज कितनी खामोश है ज़िन्दगी
न चैन है, न सुकून है, न करार है न प्यार है
बस खिजां के फूल सी हो गयी है ज़िन्दगी
कभी यारों की हंसी के दरमियाँ रहते थे हम
अब तो साक़ी के पैमाने में कटती है ज़िन्दगी
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
25th May. 04, '203'
Dedicated to my enemy.
मगर आज कितनी खामोश है ज़िन्दगी
न चैन है, न सुकून है, न करार है न प्यार है
बस खिजां के फूल सी हो गयी है ज़िन्दगी
कभी यारों की हंसी के दरमियाँ रहते थे हम
अब तो साक़ी के पैमाने में कटती है ज़िन्दगी
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
25th May. 04, '203'
Dedicated to my enemy.
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