सर पे टोपी, हाथों में रुमाल आ गया
मुबारक माहे रमज़ान का साल आ गया
जंज़ीरों में क़ैद हो गया इब्लीस
और दिल में काबे का ख़याल आ गया
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
29th June. , 12, '280'
मुबारक माहे रमज़ान का साल आ गया
जंज़ीरों में क़ैद हो गया इब्लीस
और दिल में काबे का ख़याल आ गया
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
29th June. , 12, '280'
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