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Wednesday, April 23, 2014

तुम्हें पाने की बहुत बड़ी भूल थी

तुम्हें पाने की बहुत बड़ी भूल थी 
मैं तो खार ठहरा तुम तो फूल थी 

तुम तो सहरा के मानिंद थे ऐ दोस्त 
वहां पानी की जुस्तुजू बड़ी भूल थी 

तुम एक बार ज़माने से लड़ने की कहते तो 
हाँ मुझे तेरी हर आजमाइश क़ुबूल थी 

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
5th Jan. 07, '269'

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