तरह-तरह की आवाजें
और आने जाने की
लगातार हलचल
मेरे और उसके बीच
बातों का एक लम्बा सिलसिला
कभी मिलन और कभी
बिछड़ने की बातें
कभी इरादे, कभी वादे
कभी माजी की मुलाकातें
कभी पुरानी यादें
न चाहते हुए भी तोड़ना पड़ा
अनजान वक़्त के लिए छोड़ना पड़ा
मैं भी मुड़- मुड़ कर देखता रहा
वो भी मुड़-मुड़ कर देखता रहा
टूटा सिलसिला, उठा एक गुबार
उस गुबार में गुम हो गया मेरा यार
कभी क़दम बढ़े, कभी क़दम रुके
मगर क्या करता ..........................!!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
10th Nov. 04, '202'
और आने जाने की
लगातार हलचल
मेरे और उसके बीच
बातों का एक लम्बा सिलसिला
कभी मिलन और कभी
बिछड़ने की बातें
कभी इरादे, कभी वादे
कभी माजी की मुलाकातें
कभी पुरानी यादें
न चाहते हुए भी तोड़ना पड़ा
अनजान वक़्त के लिए छोड़ना पड़ा
मैं भी मुड़- मुड़ कर देखता रहा
वो भी मुड़-मुड़ कर देखता रहा
टूटा सिलसिला, उठा एक गुबार
उस गुबार में गुम हो गया मेरा यार
कभी क़दम बढ़े, कभी क़दम रुके
मगर क्या करता ..........................!!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
10th Nov. 04, '202'
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