कल तक था मैं जिसे जानता नहीं
आज आलम ये है दुनिया पहचानता नहीं
हुआ है पहली नज़र का असर
जिसे अब तलक था मैं मानता नहीं
किया है उसने मुझे रूबरू -ए- बहार
सिवाए खिजाँ के था कुछ जानता नहीं
हर दिल अजीज़ है रुखसार पे उनके
और मुझे कोई पहचानता नहीं
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
16th Apr. 01, '152'
आज आलम ये है दुनिया पहचानता नहीं
हुआ है पहली नज़र का असर
जिसे अब तलक था मैं मानता नहीं
किया है उसने मुझे रूबरू -ए- बहार
सिवाए खिजाँ के था कुछ जानता नहीं
हर दिल अजीज़ है रुखसार पे उनके
और मुझे कोई पहचानता नहीं
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
16th Apr. 01, '152'
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