निगाहे भरम उठा दीजिये
फिर चाहे जुल्फें गिरा लीजिये
तुमसे कुछ भी न कहेंगे सनम
बस अपना फैसला सुना दीजिये
रूठ जाये न मुहब्बत का गुलशन
अपने दामन में मुझको छिपा लीजिये
इश्क़ का ज़हर पी लिया 'अजनबी'
अब मुहब्बत की कोई दवा दीजिये
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
18th July 02, '163'
फिर चाहे जुल्फें गिरा लीजिये
तुमसे कुछ भी न कहेंगे सनम
बस अपना फैसला सुना दीजिये
रूठ जाये न मुहब्बत का गुलशन
अपने दामन में मुझको छिपा लीजिये
इश्क़ का ज़हर पी लिया 'अजनबी'
अब मुहब्बत की कोई दवा दीजिये
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
18th July 02, '163'
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