कैदे ज़िन्दगी से कहाँ इतनी फुर्सत मिलती है
ढेरों नफरतों के बाद जरा सी उल्फत मिलती है
यादों की बौछारों से भीग जाते हैं दिल के तार
आंसुओं की शक्ल में जरा सी दौलत मिलती है
उसके तसव्वुर को मैंने पैकर की तरह माना है
ज़िन्दगी की सारी रानाई उसके बदौलत मिलती है
वो भी मिली, दुनिया भी मिली, खुशियाँ भी मिलीं
बाद मिन्नतों के भी कहाँ ऐसी किस्मत मिलती है
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
29th Aug. 02, '169'
ढेरों नफरतों के बाद जरा सी उल्फत मिलती है
यादों की बौछारों से भीग जाते हैं दिल के तार
आंसुओं की शक्ल में जरा सी दौलत मिलती है
उसके तसव्वुर को मैंने पैकर की तरह माना है
ज़िन्दगी की सारी रानाई उसके बदौलत मिलती है
वो भी मिली, दुनिया भी मिली, खुशियाँ भी मिलीं
बाद मिन्नतों के भी कहाँ ऐसी किस्मत मिलती है
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
29th Aug. 02, '169'
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