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Wednesday, April 16, 2014

टूटा हुआ दिल

दिल- दिल ऐ मेरे दिल 
तुम कहाँ हो - कहाँ हो !
तन्हा हूँ आज मैं - तन्हा 
चुराया था तुमने कभी  जो दिल 
वो पागल तेरा इंतज़ार कर रहा है !!

थक गया, हार गया - मैं हार गया 
तुम नहीं आये तो नहीं आये 
शायद रेत को समझा था पानी 
इसलिए हासिल कुछ नहीं कर पाए 

धड़कनों का सफ़र ख़त्म हुआ 
ज़िन्दगी की रानाई लुट गयी 
लगत है जैसे कफस में हूँ 
ज़िन्दगी किसी और के बस में है 

टूटा दिल और हम भी टूट गए 
तेरी वज्म में हम भी छूट गए 
आज न जाने क्या हुआ दिल 
कि क़तरा- क़तरा टपक रहा है लहू .....!

-मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
1st Mar. 05 , '214'

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