तजुर्बा
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Wednesday, May 07, 2014
न कोई पर्दा रहा, न कोई पर्दा नशीं
न कोई पर्दा रहा, न कोई पर्दा नशीं
ज़िन्दगी हुयी है कितनी हंसीं
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
17th Sep. 11, '290'
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