जां कुर्बान करने का हम में जज़्बा है
वतन पे मर मिटने का हम में जज़्बा है
तुम कहो तो पल में दुनिया को हिला दें
हम नौजवानों में वतन परस्ती का वो जज़्बा है
दिलों के शाखों को जो चूम आती है
मेरी क़लम की स्याही में वो जज़्बा है
राहे वतन है खुद को फ़ना कर ऐ 'अजनबी'
तुम्हारी हर इक सांस में वो जज़्बा है
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
15th June 02, '164'
वतन पे मर मिटने का हम में जज़्बा है
तुम कहो तो पल में दुनिया को हिला दें
हम नौजवानों में वतन परस्ती का वो जज़्बा है
दिलों के शाखों को जो चूम आती है
मेरी क़लम की स्याही में वो जज़्बा है
राहे वतन है खुद को फ़ना कर ऐ 'अजनबी'
तुम्हारी हर इक सांस में वो जज़्बा है
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
15th June 02, '164'
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