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Tuesday, November 11, 2014

आँख तर थी मगर मुस्कुराना पड़ा

आँख तर थी मगर मुस्कुराना पड़ा
उनके हाथों ज़हर हमको खाना पड़ा

लाख मैंने बताया लहू सुर्ख है
फिर भी दिल चीर के दिखाना पड़ा

उँगलियाँ मत ज़माने की मुझ पे उठें
इसलिए उनसे रिश्ता चलाना पड़ा

दिल में था घर में न आने दूंगा कभी
सामने आ गए तो बुलाना पड़ा

सामने जब वो आ गए मेरे
देख के उनको अपना सर झुकाना पड़ा

वो मेरे क़रीब थे बहुत
न जाने क्यूँ दूर से दिल बहलाना पड़ा

धमकियाँ रोज देती थी बिजली मुझे
इसलिए खुद नशेमन जलाना पड़ा

- 'अजनबी' और 'कशिश'

04.09.99 , '360'

2 comments:

  1. kuch to majburiya rhi hogi,tbhi to unhe is trh muskrana pada

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  2. बहुत कमाल और गजब की पंक्तियां ..आनंदम आनंदम

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