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Thursday, April 10, 2014

कुछ अशआर- 2

1. दिन को न दिन कहता हूँ
   रात को न रात कहता हूँ
  कहता हूँ तो बस तुझे
  अपनी ज़िन्दगी की सुबह कहता हूँ

2. यादों ने छूकर तेरे दिल को
     पकड़ लिया होगा दामन तेरा
   जिसमें तस्वीर होगी तेरी
   और चेहरा होगा मेरा

3. क्या कहूँ तुम से
    क्या लिखूं तुम पर
   जब,
  मेरे दिल के ही एक  हिस्से हो
तुम! तुम! तुम!

4. कितना आसान है
  सपनों की दुनिया में जीना
  मुश्किल है तो,
 टूटे हुए सपनों का ग़म पीना

5. सामने जब वो आ गए मेरे
   देख के उनको अपना सर झुकाना पड़ा
   वो मेरे करीब थे बहुत
   न जाने क्यूँ  दूर से दिल बहलाना पड़ा

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी" 

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