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Wednesday, April 16, 2014

नई उम्मीद

फिर से नई उम्मीद 
नया जोश, नए अहसास 
कुछ कर गुजरने की प्यास 
खुद से नए वादे, नई कसमें 
और उन्हें पुरजोर करने की कोशिश 
बारगाहे इलाही में आज हाथ उठे हैं 

पूरी हों तमन्नाएँ जो मेरी भी हैं 
मगर किसी और के लिए ज़िन्दा हैं 
पूरी दुनिया का प्यार मिले 
और वो सब कुछ मिले जो
मुझे चाहिए और 
मेरे अहसासों से जुड़े 
पागलपन से लबरेज 
लोगों को चाहिए  !!!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
1 st Jan. 06 , '238'

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