वो खुद को किये हैं हम से दूर
कहते हैं हम हैं मजबूर
वो तो सिमट के बैठे हैं और
हम हैं उनके नशे में चूर
कोशिश की नाता तोड़ दूँ मय से
न जाने क्यूँ कम होता नहीं सुरूर
जी करता है जाऊं कहीं जमाने से दूर
'अजनबी' मुहब्बत के सफ़र में नहीं जाते दूर
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
27th June. 05, '228'
कहते हैं हम हैं मजबूर
वो तो सिमट के बैठे हैं और
हम हैं उनके नशे में चूर
कोशिश की नाता तोड़ दूँ मय से
न जाने क्यूँ कम होता नहीं सुरूर
जी करता है जाऊं कहीं जमाने से दूर
'अजनबी' मुहब्बत के सफ़र में नहीं जाते दूर
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
27th June. 05, '228'
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