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Tuesday, April 15, 2014

ऐ वतन परस्तो

ऐ वतन परस्तो
बांध लो सर पे कफन
तोड़ दो तुम सारे बंधन
मिटा दो सारी नफरतें
मुल्क में हो सिर्फ अमन
ज़र्रा -ज़र्रा वतन से प्यार करे
टुकड़ा-टुकड़ा वतन से मुहब्बत करे
भाई - भाई से गले मिले
एक माँ से कभी कोई बेटा
जुदा न हो
मुल्क की हर गली, नुक्कड़
मोहल्ले में अमन हो .
अमन हो ! अमन हो ! अमन हो !

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी' 
26th  May. 02, '208'

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