इक प्यार के वो भी दिन थे
रेत के घरौंदे बनाया करते थे
तपती दोपहर या ढलती शाम हो
हर वक़्त हाले दिल सुनाया करते थे
बढ़ती उम्र का अजब नशा था साथियो
ख्याले वक़्त नहीं फ़साना सुनाया करते थे
हाय वो कितनी दिलकश दोपहरें थीं 'अजनबी'
जब हम गुड्डा गुड़ियों को सजाया करते थे
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
11st , Jan. 2006
रेत के घरौंदे बनाया करते थे
तपती दोपहर या ढलती शाम हो
हर वक़्त हाले दिल सुनाया करते थे
बढ़ती उम्र का अजब नशा था साथियो
ख्याले वक़्त नहीं फ़साना सुनाया करते थे
हाय वो कितनी दिलकश दोपहरें थीं 'अजनबी'
जब हम गुड्डा गुड़ियों को सजाया करते थे
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
11st , Jan. 2006
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