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Thursday, April 10, 2014

साकी तेरा मयखाना कितना अजीब है

साकी तेरा मयखाना कितना अजीब है 
यहाँ रकीब भी होता हबीब है 

न शिवाले न कलीसा न हरम से है गरज 
यहाँ सब इक दूसरे के करीब है 

इनसां हो के करे  इनसां की जो खिलाफत
दुनिया की नज़र में वो तो रक़ीब है 

सोजे उल्फत से निजात दिला दे कोई 
शायद नहीं ऐसा कोई तबीब है 

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
8th Oct. 01, '153'
 

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