साकी तेरा मयखाना कितना अजीब है
यहाँ रकीब भी होता हबीब है
न शिवाले न कलीसा न हरम से है गरज
यहाँ सब इक दूसरे के करीब है
इनसां हो के करे इनसां की जो खिलाफत
दुनिया की नज़र में वो तो रक़ीब है
सोजे उल्फत से निजात दिला दे कोई
शायद नहीं ऐसा कोई तबीब है
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
8th Oct. 01, '153'
यहाँ रकीब भी होता हबीब है
न शिवाले न कलीसा न हरम से है गरज
यहाँ सब इक दूसरे के करीब है
इनसां हो के करे इनसां की जो खिलाफत
दुनिया की नज़र में वो तो रक़ीब है
सोजे उल्फत से निजात दिला दे कोई
शायद नहीं ऐसा कोई तबीब है
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
8th Oct. 01, '153'
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