किताबों से दिल न बहला तो तेरे पास चला आया
कुछ तेरी सुनने तो कुछ अपनी सुनाने चला आया
ये प्यार का रोग है कहाँ इसकी दावा मिलती है
इसीलिए तो कुछ लम्हे बिताने चला आया
तमाम उम्र सहरा में गुजरी है अपनी
वो प्यास समंदर में वुझाने चला आया
पूरी ज़िन्दगी नाराज़ रहा वो मुझसे
आख़िरी वक़्त है मनाने चला आया
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
18th Mar. 01, '157'
कुछ तेरी सुनने तो कुछ अपनी सुनाने चला आया
ये प्यार का रोग है कहाँ इसकी दावा मिलती है
इसीलिए तो कुछ लम्हे बिताने चला आया
तमाम उम्र सहरा में गुजरी है अपनी
वो प्यास समंदर में वुझाने चला आया
पूरी ज़िन्दगी नाराज़ रहा वो मुझसे
आख़िरी वक़्त है मनाने चला आया
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
18th Mar. 01, '157'
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