वो और मैं , और
कमरे में खामोशी
रात का सन्नाटा
सफ़ेद रौशनी में
चुपचाप
दो दिलों की धडकनें
और कुछ जज़्बात
कुछ यादों के सिलसिले
कुछ ख़्वाबों के मकां
और कुछ ख्वाहिशों
और तमन्नाओं का वजूद
इक बहाने की तलाश कि
उनसे कुछ बोलेन , और
उन्हें भी मेरे कहने का इंतज़ार
इक अजीब सा आलम
हम दोनों के दरमियाँ
चुप्पी का दरीचा
यहाँ भी बन्द और
वहां भी चुप्पी टूटने
कोई आसार नहीं
बस! वो और मैं और
कभी ख़त्म न होने वाली चुप्पी !!
- मुहम्मद शाहिदमंसूरी 'अजनबी'
19th Dec. 02 '170'
कमरे में खामोशी
रात का सन्नाटा
सफ़ेद रौशनी में
चुपचाप
दो दिलों की धडकनें
और कुछ जज़्बात
कुछ यादों के सिलसिले
कुछ ख़्वाबों के मकां
और कुछ ख्वाहिशों
और तमन्नाओं का वजूद
इक बहाने की तलाश कि
उनसे कुछ बोलेन , और
उन्हें भी मेरे कहने का इंतज़ार
इक अजीब सा आलम
हम दोनों के दरमियाँ
चुप्पी का दरीचा
यहाँ भी बन्द और
वहां भी चुप्पी टूटने
कोई आसार नहीं
बस! वो और मैं और
कभी ख़त्म न होने वाली चुप्पी !!
- मुहम्मद शाहिदमंसूरी 'अजनबी'
19th Dec. 02 '170'
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