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Tuesday, April 22, 2014

गूंजते रहे सन्नाटे



गूंजते रहे सन्नाटे
सिसकती रही शहनाईयां
 गुम हो गयीं अंगड़ाईयां
रह गयी तो सिर्फ परछाईयाँ

सुना है ख़त्म हुआ
मुहब्बत का सफ़र
ज़िन्दगी अपने रंग से
बदरंग हो गयी
तड़प अब तड़प न रहकर
इक शायरी हो गयी

अदब के कुछ और पन्ने रंग गए
देखो तुम खुद ही देखो
अदब की जमीं पे
एक और नज़्म नमूदार हो गयी  !!!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
20th  Feb. 11


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