गूंजते रहे सन्नाटे
सिसकती रही शहनाईयां
गुम हो गयीं अंगड़ाईयां
रह गयी तो सिर्फ परछाईयाँ
सुना है ख़त्म हुआ
मुहब्बत का सफ़र
ज़िन्दगी अपने रंग से
बदरंग हो गयी
तड़प अब तड़प न रहकर
इक शायरी हो गयी
अदब के कुछ और पन्ने रंग गए
देखो तुम खुद ही देखो
अदब की जमीं पे
एक और नज़्म नमूदार हो गयी !!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
20th Feb. 11
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