कुछ इस तरह ज़िन्दगी में बहारें आयीं
हर इक रंग लेके मेरी दुआएं आयीं
उम्र का इक हिस्सा तन्हा गुजारा
अब तो हर जानिब से शुआयें आयीं
पहले क़लम, कागज और अदब का साथ था
अब तो लबे रुखसार से मुस्कानें आयीं
पहले कभी ख़ुशी का आलम तारी न हुआ
अब तो मेरे ऊपर खुशियों की घटायें छायीं
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
9 th Nov. 02, '233'
हर इक रंग लेके मेरी दुआएं आयीं
उम्र का इक हिस्सा तन्हा गुजारा
अब तो हर जानिब से शुआयें आयीं
पहले क़लम, कागज और अदब का साथ था
अब तो लबे रुखसार से मुस्कानें आयीं
पहले कभी ख़ुशी का आलम तारी न हुआ
अब तो मेरे ऊपर खुशियों की घटायें छायीं
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
9 th Nov. 02, '233'
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