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Wednesday, April 16, 2014

कुछ इस तरह ज़िन्दगी में बहारें आयीं

कुछ इस तरह ज़िन्दगी में बहारें आयीं 
हर इक रंग लेके मेरी दुआएं आयीं 

उम्र का इक हिस्सा तन्हा गुजारा 
अब तो हर जानिब से शुआयें आयीं 

पहले क़लम, कागज और अदब का साथ था 
अब तो लबे रुखसार से मुस्कानें आयीं 

पहले कभी ख़ुशी का आलम तारी न हुआ 
अब तो मेरे ऊपर खुशियों की घटायें छायीं 

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
9 th Nov. 02, '233'

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