बड़ा सा आँगन
और दो प्यारे से फूल
कहीं निकहत कहीं इमरोज़
खुशियाँ ज्यादा और थोड़ा सा सोज़
ऐसे किलकारियों के माहौल में
अनीसा और शाहिद की खिलखिलाहटें
उन दो फूलों का
कभी मेरे क़रीब आना
कभी तुम्हारे पास जाना
अब तो रब से यही है दुआ
और यही है तमन्ना
कभी ख़त्म न हो ऐसा सफ़र
ताकयामत ज़िन्दा रहे ऐसी प्यारी
मुहब्बत का असर !!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
28 th Aug. 03 '175'
और दो प्यारे से फूल
कहीं निकहत कहीं इमरोज़
खुशियाँ ज्यादा और थोड़ा सा सोज़
ऐसे किलकारियों के माहौल में
अनीसा और शाहिद की खिलखिलाहटें
उन दो फूलों का
कभी मेरे क़रीब आना
कभी तुम्हारे पास जाना
अब तो रब से यही है दुआ
और यही है तमन्ना
कभी ख़त्म न हो ऐसा सफ़र
ताकयामत ज़िन्दा रहे ऐसी प्यारी
मुहब्बत का असर !!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
28 th Aug. 03 '175'
No comments:
Post a Comment