Followers

Tuesday, April 15, 2014

कभी यक़ीन ही नहीं हुआ

कभी यक़ीन ही नहीं हुआ
मेरे लिए कोई इतना
कर सकता है
शाम को सहर और
सहर को शाम
कह सकता है -
पागलपन की हद तक
उसने माना है मुझे
यहाँ तक कि
मेरे इशारों पे भी
चल सकता है
मेरे दिल में जगह, बनाई है
उसने
अब तो-
क़लम का हिस्सा भी
हो गया है
मैं अजीब तो वो भी
अजीब हो गया है !!!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
20th June. 05,  '206'

No comments:

Post a Comment