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Tuesday, April 15, 2014

आसमानों में उड़ने की

उम्मीद है - 
आसमानों में उड़ने की 
ज़िन्दगी से लड़ने की 
कुछ ऐसा कर गुजरने की 
जो दे जाए लम्हा भर सुकून 
और एक टुकड़ा हसीं ज़िन्दगी 

मगर न जाने क्यूँ 
टूट रहे हैं वादे 
बिखर रही है ज़िन्दगी 
डगमगा रहे हैं ख्वाब 
लगता है कुछ भी न रहा अपना 

कभी खुद से हूँ नाराज़ तो 
कभी औरों से हूँ नाराज़ 
सिमट सा गया कारवां 
ठहर से गए ख्यालात 
कुछ पाने के हौसले जाते रहे 
कुछ खोने का डर भी न रहा 
न जाने क्या हुआ - 

अभी भी उम्मीद का चिराग 
जला हुआ  है 
कोशिशें ज़िन्दा हैं ! 
'अजनबी' उठो ! जागो !
तुम्हारा वजूद तुम्हें पुकार रहा है 
कुछ कर गुजरने का बाट जोह रहा है 
कसम लो और करो पागलपन 
हमेशा ज़िन्दगी का शाहिद होने के लिए  !!! 

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
1st  Jan. 05 '205'
Dedicated to Pagalpan

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