ज़िंदगी के दरख्त की शाख पे
ठहरी हुई बूँद की मानिंद हो तुम
जिसे बरसना अभी बाकी है .......
मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
10th June. 2008, '249'
ठहरी हुई बूँद की मानिंद हो तुम
जिसे बरसना अभी बाकी है .......
मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
10th June. 2008, '249'
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