काश कोई यहाँ अपना हमनशीं होता
जिसे मैं अपना हाले दिल सुना देता
गर सामने उसके मैं झूठा ही रूठता
आसुंओं से अपने मेरी नाराजगी मिटा देता
हर इक पल भारी कट रहा है 'अजनबी'
वो रास्ते, वो गलियां, वो खलिश मिटा देता
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
22nd May. 01, '218'
जिसे मैं अपना हाले दिल सुना देता
गर सामने उसके मैं झूठा ही रूठता
आसुंओं से अपने मेरी नाराजगी मिटा देता
हर इक पल भारी कट रहा है 'अजनबी'
वो रास्ते, वो गलियां, वो खलिश मिटा देता
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
22nd May. 01, '218'
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