एक शायर
और कई हवाएं
दूर तक फैला सन्नाटा
हर सू तन्हाईयों के मकाँ
है ख़ामोशी उनमें बयां
न कोई चरिंदा
न कोई परिंदा
बस एक चाँद
और चाँद में उसकी महबूबा
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
16th Mar. 02, '146'
और कई हवाएं
दूर तक फैला सन्नाटा
हर सू तन्हाईयों के मकाँ
है ख़ामोशी उनमें बयां
न कोई चरिंदा
न कोई परिंदा
बस एक चाँद
और चाँद में उसकी महबूबा
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
16th Mar. 02, '146'
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