माना कि तुम
किस्मत की लकीरों को नहीं बदल सकती
मगर
मेरी किस्मत तो हो सकती हो !
माना कि तुम
ज़िंदगी का दरख्त नहीं बन सकती
मगर
खिज़ा का फूल तो हो सकती हो !
खिज़ा का फूल तो हो सकती हो !
माना कि तुम
मुहब्बत की धड़कन नहीं बन सकती
मगर
अहसास-ऐ-मुहब्बत तो हो सकती हो !!!
-मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
12nd May. 2007, '247'
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