ये शाम के धुंधलके
और मुहब्बत के साये
हल्की- हल्की गहराती
ये खूबसूरत रात
छत की मुंडेर पे बैठी
मुहब्बत से लबरेज
वो मासूम सी
दुपट्टे को उमेठती लड़की
सीने में इक खलिश लिए
आंखों में इक गहरा इंतजार
होठों पे बेवजह मुस्कराहट
ज़िन्दगी ने करवट बदली
यादों का दिया मचलने लगा
घर की दहलीज , सफर के रास्ते
ट्रेन की धड़-धड़ , फेरीवालों की आवाजें
और किले की दीवारें
ना जाने कब पहुँच गई वो यहाँ
ख़ुद उसको ख़बर नहीं
वो मायूस शाम
रात की शुआओं में तब्दील हो गयी
और आँखें अब भी मुन्तजिर
इस तवक्को पे टिकी हुई
आरिज पे ढलके आंसुओं को
आएगा महबूब हथेली पे समेटने ।
- मुहम्मदशाहिद मंसूरी "अजनबी "
16th Nov. 2008, Delhi
और मुहब्बत के साये
हल्की- हल्की गहराती
ये खूबसूरत रात
छत की मुंडेर पे बैठी
मुहब्बत से लबरेज
वो मासूम सी
दुपट्टे को उमेठती लड़की
सीने में इक खलिश लिए
आंखों में इक गहरा इंतजार
होठों पे बेवजह मुस्कराहट
ज़िन्दगी ने करवट बदली
यादों का दिया मचलने लगा
घर की दहलीज , सफर के रास्ते
ट्रेन की धड़-धड़ , फेरीवालों की आवाजें
और किले की दीवारें
ना जाने कब पहुँच गई वो यहाँ
ख़ुद उसको ख़बर नहीं
वो मायूस शाम
रात की शुआओं में तब्दील हो गयी
और आँखें अब भी मुन्तजिर
इस तवक्को पे टिकी हुई
आरिज पे ढलके आंसुओं को
आएगा महबूब हथेली पे समेटने ।
- मुहम्मदशाहिद मंसूरी "अजनबी "
16th Nov. 2008, Delhi
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