दूरियां बढ़तीं गयीं
फासले बढ़ते गए
हम तो बदले ही थे
मगर अब तो
तुम भी बदल गए !
ये मुहब्बत का सफ़र है
इसमें ऐसा ही होता है
ऐ दोस्त, इसमें खुशियाँ कम
ग़म ज्यादा होता है !
कभी सोचा न था कि
ऐसा भी दिन आएगा
जो कभी न सुना
उसे सुनने का वक़्त आएगा
सफ़र हो जायेगा भारी
ज़िन्दगी हो जाएगी बोझिल
वो लम्हा कुछ ऐसा होगा
जब सब कुछ मिट सा जायेगा !
ऐ दोस्त ! 'आप कौन' कहकर
तुमने क्यूँ किया ऐसा , क्यूँ ?
क्यूँ ? क्यूँ ? क्यूँ ? क्यूँ ?
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
1st July 04, '187'
फासले बढ़ते गए
हम तो बदले ही थे
मगर अब तो
तुम भी बदल गए !
ये मुहब्बत का सफ़र है
इसमें ऐसा ही होता है
ऐ दोस्त, इसमें खुशियाँ कम
ग़म ज्यादा होता है !
कभी सोचा न था कि
ऐसा भी दिन आएगा
जो कभी न सुना
उसे सुनने का वक़्त आएगा
सफ़र हो जायेगा भारी
ज़िन्दगी हो जाएगी बोझिल
वो लम्हा कुछ ऐसा होगा
जब सब कुछ मिट सा जायेगा !
ऐ दोस्त ! 'आप कौन' कहकर
तुमने क्यूँ किया ऐसा , क्यूँ ?
क्यूँ ? क्यूँ ? क्यूँ ? क्यूँ ?
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
1st July 04, '187'
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