ये वो भरम है जो चेहरे पे झलक आता है
हुस्न का पैमाना हो तो जरूर छलक जाता है
साकी ये तो मयखाने का उसूले पैमाना है
जिसे भरा पैमाना दो, वो छलक जाता है
उस दीवाने का आलम बड़ा ही अजीब है जनाब
खुद को अजनबी बताता है औरों के गले तलक आता है
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी
2nd Aug. 05, '276'
हुस्न का पैमाना हो तो जरूर छलक जाता है
साकी ये तो मयखाने का उसूले पैमाना है
जिसे भरा पैमाना दो, वो छलक जाता है
उस दीवाने का आलम बड़ा ही अजीब है जनाब
खुद को अजनबी बताता है औरों के गले तलक आता है
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी
2nd Aug. 05, '276'
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