न माँ दुश्मन है न बाप है दुश्मन
ये मुआशरा सबसे बड़ा है दुश्मन
प्यार लगता था कभी फूलों सा मुझे
नसों में लिपट के पड़ा है दुश्मन
कई पर्दों में खुद को छुपा रखा था
हर पर्दा बन के खड़ा है दुश्मन
मैंने खुद को बचाया उससे अक्सर
तहे दिल तक वो बढ़ा है दुश्मन
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
1st Oct. 02, '196'
ये मुआशरा सबसे बड़ा है दुश्मन
प्यार लगता था कभी फूलों सा मुझे
नसों में लिपट के पड़ा है दुश्मन
कई पर्दों में खुद को छुपा रखा था
हर पर्दा बन के खड़ा है दुश्मन
मैंने खुद को बचाया उससे अक्सर
तहे दिल तक वो बढ़ा है दुश्मन
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
1st Oct. 02, '196'
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