देखेंगे ज़माना तुझे हम भी आजमा के
गुलाब की डंडी और गुलमोहर का फूल थमा के
शायद ज़िन्दगी में आ जाये कोई मेरे भी
इक उल्फत का चराग सौ शम्मा जला के
यूँ हाथ मिलाने और गले लगाने से दोस्ती नहीं होती
सब कुछ मिटाना होता है यारो कूद को मिटा के
समंदर में खुद ब खुद साहिल नहीं मिलता
मौजों से लड़ना होता है खुद को दाँव पे लगा के
औरों को सलाह देने के काबिल कहाँ तू 'अजनबी'
तेरी ज़िन्दगी बिखरी है बस यूँ ही चला के
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
5th Mar. 2007
गुलाब की डंडी और गुलमोहर का फूल थमा के
शायद ज़िन्दगी में आ जाये कोई मेरे भी
इक उल्फत का चराग सौ शम्मा जला के
यूँ हाथ मिलाने और गले लगाने से दोस्ती नहीं होती
सब कुछ मिटाना होता है यारो कूद को मिटा के
समंदर में खुद ब खुद साहिल नहीं मिलता
मौजों से लड़ना होता है खुद को दाँव पे लगा के
औरों को सलाह देने के काबिल कहाँ तू 'अजनबी'
तेरी ज़िन्दगी बिखरी है बस यूँ ही चला के
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
5th Mar. 2007
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