आसमाँ पे छाई काली घटा बादल की
घटा लायी कुछ बूँदें सावन की बरसात की
भीग गया दामन मेरा इस बरसात में
बह गए दिल के अरमां इस मनभावन बरसात में
मन भटका कुछ इधर उधर इस बरसात से
याद आये बीते लम्हे इस बरसात से
दिल हो गया बाग़ बाग़ उन गुजरी यादों से
हो गए दूर दिल के दुःख इन प्यारी यादों से
दिल में उठी फिर से कसक आज उनसे मिलने की
पर यकीं है हमें वो न मिलेंगे इस भीगे बरसात में
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
09.05.99, '358'
इस ग़ज़ल को लिखने में महेंद्र का सहयोग रहा ...
घटा लायी कुछ बूँदें सावन की बरसात की
भीग गया दामन मेरा इस बरसात में
बह गए दिल के अरमां इस मनभावन बरसात में
मन भटका कुछ इधर उधर इस बरसात से
याद आये बीते लम्हे इस बरसात से
दिल हो गया बाग़ बाग़ उन गुजरी यादों से
हो गए दूर दिल के दुःख इन प्यारी यादों से
दिल में उठी फिर से कसक आज उनसे मिलने की
पर यकीं है हमें वो न मिलेंगे इस भीगे बरसात में
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
09.05.99, '358'
इस ग़ज़ल को लिखने में महेंद्र का सहयोग रहा ...
No comments:
Post a Comment