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Thursday, April 10, 2014

कल तक था मैं जिसे जानता नहीं

कल तक था मैं जिसे जानता नहीं
आज आलम ये है दुनिया पहचानता नहीं

हुआ है पहली नज़र का असर
जिसे अब तलक था मैं मानता नहीं

किया है उसने मुझे रूबरू -ए- बहार
सिवाए खिजाँ के था कुछ जानता नहीं

हर दिल अजीज़ है रुखसार पे उनके
और मुझे कोई पहचानता नहीं

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
16th Apr. 01, '152'

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