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Wednesday, April 16, 2014

दस्तक

दिल पे देता है कोई दस्तक
शायद पहुंचा है वो उस उम्र तक
रोज-ब - रोज  आईने में निहारने लगा
खुद को खुद ही वो अच्छा लगने लगा

ज़माने की हर दीवार
तोड़ने की बातें वो करने लगा
गुलमोहर और पलाश भी
उसे अच्छा लगने लगा

अब तो ग़ज़ल और नज़्म भी
वो गौर से सुनने लगा
अब तो चुप-चुप सा वो रहने लगा

शायरों से वास्ता और
क़लम की तारीफ करने लगा
रात सोचते हुए कटने लगीऔर
दिन भी अफ्सुर्दगी में काटने लगा
जमाने से हो गया वो तो 'अजनबी'
शायद खुदी से बातें करने लगा

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
8th July 05, '224'


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