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Thursday, April 17, 2014

ज़िन्दगी

आजकल ज़िंदगी तन्हा गुजर रही है
 कुछ रूठ सी रही है
न जाने क्यों
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
21st Dec. 2007, '246'

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