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Saturday, April 26, 2014

तुझे सोचता हूँ , तुझे चाहता हूँ

तुझे सोचता हूँ , तुझे चाहता हूँ
मैं शामो-सहर तुझे मांगता हूँ

ज़िन्दगी की डगर बड़ी है कठिन
कदम- दर-कदम खुद को लुटाता हूँ

न सोचूं तुझे तो कैसी सहर
न चाहूँ तुझे तो क्या चाहता हूँ

अपने हिस्से की खुशियाँ तेरे दामन में भर दूँ
कोई बता दे मुझे, बाद इसके भी क्या चाहता हूँ

-  मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
25th Nov. 12, '277'

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