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Saturday, April 12, 2014

बड़ा सा आँगन

बड़ा सा आँगन
और दो प्यारे से फूल
कहीं निकहत कहीं इमरोज़
खुशियाँ ज्यादा और थोड़ा सा सोज़
ऐसे किलकारियों के माहौल में
अनीसा और शाहिद की खिलखिलाहटें

उन दो फूलों का
कभी मेरे क़रीब आना
कभी तुम्हारे पास जाना

अब तो रब से यही है दुआ
और यही है तमन्ना
कभी ख़त्म न हो ऐसा सफ़र
ताकयामत ज़िन्दा रहे ऐसी प्यारी
मुहब्बत का असर !!!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी' 
28 th Aug. 03 '175'

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